ग्रीन पार्टी: कभी अराजक लोगों का जमावड़ा, आज आम लोगों की पार्टी

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जनवरी 1980 में ग्रीन पार्टी बनी थी. तब अराजक लोगों द्वारा बनाई गई पार्टी आज समाज के मध्य में है. बहुत से लोग इसे देश का सबसे बड़ा डिरैडिकलाइजेशन प्रोजेक्ट मानते हैं. व्यवस्था विरोधियों की पार्टी अब आम लोगों की पार्टी है.

हालांकि ग्रीन पार्टी इस समय विपक्ष में है, लेकिन उसकी 40वीं वर्षगांठ के समारोह में राष्ट्रपति भाषण देंगे. हमेशा ऐसा नहीं था. 40 साल पहले न तो राष्ट्रपति ग्रीन पार्टी के सम्मेलन में आते और ग्रीन पार्टी का कोई आरंभिक सदस्य राष्ट्रपति के साथ यदि बातचीत करता दिखता तो उस पर तुरंत सत्ता के करीब होने का संदेह हो जाता. राजनीतिक राह पर समाज के बीच तक पहुंचने की ग्रीन पार्टी की यात्रा बहुत ही रोमांचक रही है. वे ऐसे मुद्दे को सामाजिक बहस के केंद्र में लाने में कामयाब रही है, जिसे सत्ताधारी पार्टियां बुरी तरह नजरअंदाज करती रहीं. प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा.

20 साल तक जर्मनी की संसद में सिर्फ चार पार्टियां थीं, चांसलर अंगेला मैर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन सीडीयू, उसकी सहयोगी क्रिश्चियन सोशल यूनियन, सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी और उदारवादी फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी. ग्रीन पार्टी के पायनियरों ने एक अलग तरह की जिंदगी, उत्पादन में ज्यादा टिकाऊपन, सामाजिक बंधनों से मुक्ति, अंतरराष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि जैसे मुद्दों को समाज के केंद्र में ला दिया है.

युवाओं में लोकप्रिय

ग्रीन पार्टी की कामयाबी का राज ये है कि उसे लगातार युवाओं का समर्थन मिलता रहा है. व्यवस्था के विरोध में शुरू हुई पार्टी आज भी व्यवस्था के विरोधियों को आकर्षित करती है. देश की दो अलग अलग पीढ़ियों की रगों में ग्रीन पार्टी का खून बह रहा है. यूरोपीय संसद के चुनावों में ग्रीन पार्टी की कामयाबी का श्रेय 30 साल से कम उम्र के युवाओं को जाता है. उनमें से ज्यादातर के लिए जलवायु परिवर्तन सचमुच का और निजी तौर पर महसूस किया जा रहा खतरा है.

ग्रीन पार्टी के 40 साल के इतिहास में इधर उधर भटकने और बंद गली में फंसने के बहुत से मामले रहे हैं. पार्टी के अंदर कट्टरपंथियों और यथार्थवादियों के झगड़े ने पार्टी को लंबे समय तक पंगु बनाए रखा, जर्मन एकीकरण का फायदा उठाने के बदले पर्यावरण की अपनी चिंता के साथ ग्रीन पार्टी कम से कम पश्चिमी हिस्से में संसद से बाहर हो गई. शुरुआती सालों में पार्टी में बहुत से अराजकतावादी अलग अलग मांगें उठाते रहे. देश के पिछड़े पूर्वी हिस्से में पांव जमाना अभी भी पार्टी के लिए आसान नहीं है.

इस बीच ग्रीन पार्टी ने पूंजीवाद से सुलह कर ली है और उद्यमियों के साथ अच्छे रिश्ते बना लिए हैं. आज की ग्रीन पार्टी न सिर्फ सरकार में शामिल होने का अनुभव हासिल कर चुकी है बल्कि कई बरसों से एक प्रांतीय सरकार का नेतृत्व भी कर रही है. अब वह सरकार बनाने के लिए सिर्फ वामपंथी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के सहयोग पर निर्भर नहीं है. इस समय वह देश के 16 प्रांतों में से 11 में सरकार में शामिल है और वह भी अलग अलग पार्टियों के साथ.

फिर से केंद्र सरकार में

इस समय चांसलर अंगेला मैर्केल की गठबंधन सरकार में सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी सहयोगी है. केंद्र में सरकार बनाने के मुद्दे पर ग्रीन पार्टी का रुख स्पष्ट है. पिछले दो साल से रोबर्ट हाबेक और अन्नालेना बेयरबॉक पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं. दोनों पार्टी के यथार्थवादी धड़े के हैं और पार्टी बहुत उत्साहित है. इस समय जनमत सर्वेक्षणों में पार्टी 23 प्रतिशत पर चल रही है और हालात ऐसे ही रहे तो 2021 में होने वाले चुनावों में बहुत संभव है कि ग्रीन को सरकार में हिस्सेदारी मिले.

और तब उन्हें फिर अपने घेरे से बाहर निकलना होगा. जनमत सर्वेक्षणों जैसा समर्थन अगर बना रहा तो पार्टी को वित्त, रक्षा और गृह मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभालनी पड़ सकती है. लगातार ध्रुवीकृत होते विश्व में उसे यूरोपीय और बहुराष्ट्रीय विचारों का झंडा बुलंद करना होगा, जो हमेशा ग्रीन पार्टी के विचार भी रहे हैं. और फिर फ्राइडे फॉर फ्यूचर जैसे पर्यावरण आंदोलनों की उम्मीदों पर भी खरा उतरना होगा. लेकिन ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए भी पार्टी तैयार दिखती है. पिछले कुछ सालों में उनकी सदस्य संख्या 70,000 से बढ़कर 1,00,000 हो गई है. उनमें बहुत से युवा हैं, बहुत पढ़े लिखे युवा.

प्रभावी पर्यावरण सुरक्षा

पार्टियों का विरोध करने वाली पार्टी से मौजूदा ग्रीन पार्टी बनने का रास्ता बहुत लंबा रहा है. अब समय आ गया है कि वे दिखा सकें कि 20 फीसदी मतदाताओं के समर्थन के साथ चोटी पर राजनीति करने से क्या बदलता है. पहली बार सरकार में आने के समय की तरह नहीं, जब 1998 में ग्रीन पार्टी सिर्फ 8 प्रतिशत मतों के साथ चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर की सरकार में शामिल हुई थी. तब एसपीडी के चांसलर ने अपनी और ग्रीन पार्टी के नेता की तुलना शेफ और बैरे से की थी.

चालीस साल में ग्रीन पार्टी ने देश को बदल दिया है. लेकिन अगली लंबी कूद का इंतजार है. देश को स्वघोषित पर्यावरण संरक्षकों से फौरी कदमों की उम्मीद है. लेकिन ये आसान नहीं होगा क्योंकि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के कदमों का बहुत से लोगों पर बुरा असर भी होगा. अब तक ग्रीन पार्टी को इस बात का पायदा मिलता रहा है वे अपने मुख्य मुद्दे से भटके नहीं हैं. इस बात का सबूत मिलना बाकी है कि पर्यावरण सुरक्षा के कदम उठाने पर भी लोग उनका साथ देते रहेंगे.

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