ग्रामीण समृद्धता में सहायक बनेगी प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई-प्रति बूंद अधिक उत्पादन योजना

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    ग्रामीण समृद्धता में सहायक बनेगी प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई-प्रति बूंद अधिक उत्पादन योजना
    असमतल भूमि व वर्षाजल पर निर्भर किसानों-बागवानों के लिए साबित होगी वरदानऊना: भू-जल में निरंतर आ रही कमी के मद्देनज़र सरकार ने किसानों व बागवानों के लिए ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-प्रति बूंद अधिक उत्पादन’ योजना लागू की है, जिससे जल संरक्षण के साथ-साथ गैर सिंचित क्षेत्रों में भी कृषि उत्पादन में वृद्धि कर ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धता लाई जा सकेगी। इसके अलावा कृषि के लिए वर्षा जल पर निर्भरता वाले क्षेत्रों में जल संचय और जल सिंचन के माध्यम से वर्षा जल दोहन से जल संरक्षण और भूमिगत जल स्तर को भी बढ़ाया जा सकेगा।इस योजना के बारे में कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि प्रदेश सरकार इस योजना के माध्यम से प्रति बूंद अधिक फसल के लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर लोकप्रिय बनाने पर बल दे रही है, ताकि प्रदेश की भूगौलिक स्थिति में उबड़-खाबड़ा भूमि पर फसलों के लिए उपयुक्त मात्रा में जलापूर्ति संभव बनाई जा सके।

    इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसानों व बागवानों को सूक्ष्म सिंचाई-ड्रिप एवं स्प्रिंकलर प्रणाली स्थापित करने के लिए लघु एवं सीमांत किसानों-बागवानों को 80 प्रतिशत अनुदान दे रही है, जबकि बड़े किसानों को 45 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान किया गया है।ड्रिप इरिगेशन सिस्टम पर खर्चवहीं उपनिदेशक, बागवानी अशोक धीमान ने बताया कि प्रति हेक्टेयर अधिक दूरी की फसल पर 12 वर्गमीटर की दूरी पर ड्रिप सिंचाई स्थापित करने के लिए 27 हजार, 10 वर्गमीटर पर 28 हजार, 9 पर वर्गमीटर तक 30 हजार रूपये तक की लागत आती है तथा जैसे-जैसे फसल की प्रजाति के अनुसार दूरी कम होती जाएगी, इसकी लागत बढ़ती जाएगी। उन्होंने कहा कि न्यूनतम 1.2 बाई 0.6 वर्गमीटर पर 1.58 लाख रूपये तक लागत आती है, जिसपर सरकार अनुदान दे रही है। इसके अतिरिक्त एक हेक्टेयर भूमि पर स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली 5 वर्गमीटर की दूरी पर स्थापित करने पर 73.5 हजार तथा 3 वर्गमीटर पर 84 हजार रूपये की लागत आती है। मिनी स्थानान्तरित स्प्रिंकलर प्रणाली की लागत 10 वर्गमीटर पर 1.06 लाख तथा 8 वर्गमीटर पर 1.17 लाख प्रति हेक्टेयर आती है।

    साधारण सिंचाई में अधिकतर पानी जो कि पौधों को मिलना चाहिए वो भाप बनकर उड़ जाता है या जल रिसाव के द्वारा जमीन के अंदर चला जाता है जिससे पानी की अधिक खर्च होता है। इस नई सिंचाई पद्धति से जल की बचत होती है और फसल को उपयुक्त पानी की आपूर्ति भी हो जाती है। इस पद्धति के माध्यम से कम दाब और नियंत्रण से सीधे पौधों के जड़ों तक पानी के साथ साथ उर्वरक की भी आपूर्ति होगी, जिससे पोषक तत्वों की लीचिंग व वाष्पीकरण के नुकसान से भी बचाव होगा। असमतल यानि उबड़ खाबड़ भूमि जहाँ पानी को आसानी से नहीं पहुंचाया जा सकता ऐसे जगहों पर भी इस विधि से सिंचाई करके गुणवत्तायुक्त अधिक पैदावार करना संभव होगा। फसली बीमारियों व खरपतवार पर नियंत्रण के साथ-साथ 30 प्रतिशत तक खाद की बचत और 10 प्रतिशत तक मजदूरी की लागत में कमी होगी।

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