नेपाल की राष्ट्रपति विद्दा देवी भंडारी ने नेपाल के नक़्शे को बदलने संबंधी संविधान संशोधन बिल पर हस्ताक्षर कर दिया है. उनके हस्ताक्षर के बाद नेपाल के नए नक़्शे को सरकारी मंज़ूरी मिल गई है और अब नेपाल आधिकारिक रुप से अपने नक़्शे में कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को दिखा सकता है.
ये तीनों जगहें फ़िलहाल भारत के उत्तराखंड में हैं और इस पर भारत का क़ब्ज़ा है. नेपाल इसे अपना क्षेत्र मानता है लेकिन ये पहली बार हुआ है जब नेपाल ने इन इलाक़ों को अपने आधिकारिक नक़्शे में शामिल करने का फ़ैसला किया है. भारत इन दावों का ख़ारिज करता है और इसे अपना इलाक़ा मानता है. इससे पहले गुरुवार को ही नेपाली संसद के ऊपरी सदन ने भी देश के नए नक़्शे को सर्वसम्मति से पारित कर दिया था.
नए नक़्शे और नए राष्ट्रीय प्रतीक को संसद में मौजूद 57 सदस्यों ने मंज़ूरी दी है. नेपाल के ऊपरी सदन में कुल 58 सदस्य होते हैं. संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद अब इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद नए नक़्शे को आधिकारिक तौर पर नेपाल के राष्ट्रीय प्रतीक में इस्तेमाल किया जाएगा. इसके बाद नेपाल सरकार के आधिकारिक लेटर हेड पर इसी नए प्रतीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इसमें नेपाल के कूटनीतिक अभियानों में भी इस्तेमाल किया जाएगा.
सदन में बहस से पहले नेपाली कांग्रेस के एक सांसद राधेश्याम अधिकारी ने सरकार से आग्रह किया कि भारत के साथ कूटनीतिक बातचीत की शुरू की जाए ताकि सीमा विवाद को सुलझाया जा सके. उन्होंने कहा, “हमारा मुख्य उद्देश्य यह पक्का करना है कि कालापानी से भारतीय फ़ौज वापस हो जाए जो कि नेपाल का क्षेत्र है. इसके लिए आगे बातचीत करनी होगी.”
लेकिन पूर्व विदेश मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ ने नेपाल के बातचीत के आग्रह को नज़रअंदाज़ करने के लिए भारत की आलोचना की. उन्होंने कहा कि भारत ने नवंबर 2019 में नया नक़्शा रिलीज़ किया था जिसके बाद नेपाल ने बातचीत का आग्रह किया था.
अदालत ने कहा है कि यदि कोरोना महामारी के बीच इस यात्रा की अनुमति दी गई तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ़ नहीं करेंगे. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में लाखों लोगों के जमान होने से संक्रमण की आशंका जताते हुए यात्रा पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
बुधवार को संयुक्त राष्ट्र आम सभा में 75वें सत्र के लिए अध्यक्ष पद का चुना, सुरक्षा परिषद के पाँच अस्थायी सदस्यों का चुनाव और आर्थिक और सामाजिक परिषद के सदस्यों का चुनाव कोरोना वायरस महामारी की वजह से विशेष वोटिंग प्रावधानों के ज़रिए कराया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता को समर्थन देने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का आभार जताया है और कहा है कि भारत सभी देशों के साथ मिलकर शांति, सुरक्षा और समता को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा.