हमीरपुर : आठ हजार किसान उगा रहे जहरमुक्त खाद्यान्न, प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना ने दिखाई राह

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Natural Farming Khushhaall Kisan Yojana a ambitious plan
Natural Farming Khushhal Kisan Yojana a ambitious plan :Hamirpur (Himachal)

कई किसान मित्र योजनाएं संचालित की जा रही हैं। प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के माध्यम से किसानों का रूख न केवल जहरमुक्त खेती की ओर हुआ है, बल्कि कम लागत में बेहतर पैदावार मिलने से उनके आर्थिक स्तर में भी आशातीत बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। 

“प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना” किसानों के लिए चलाई जा रही एक बहुत ही महत्वकांक्षी योजना है। इसके अंतर्गत मुख्यतः सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पद्धति से फसलें उगायी जाती हैं। इस पद्धति से फसल उगाने में किसी भी प्रकार की रसायनिक खाद, कीटनाशकों का प्रयोग किए बिना किसान जहरमुक्त खाद्यान्न का उत्पादन कर रहा है। प्राकृतिक खेती के लिए कोई भी संसाधन बाजार से खरीदने की जरूरत नहीं होती है। ऐसे में बाजार पर किसान की निर्भरता नहीं रह जाती है, जिससे फसल उत्पादन की लागत में भी डेढ़ से दो गुणा कमी देखने को मिली है।

रसायनों का प्रयोग न करने से पर्यावरण, मिट्टी और जल प्रदूषण पर नियन्त्रण पाने में सहायता मिल रही है। मिट्टी की उर्वरता और लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है, क्योंकि स्वदेशी गाय के गोबर और मूत्र आधारित सूत्र ही प्राकृतिक खेती में कम पानी की जरूरत रहती है, जिस कारण कम बारिश होने पर भी अच्छी फसल ली जा रही है। सूखे के दौरान भी इस पद्धति से खेती करने पर रसायनिक खेती की तुलना में अधिक फसल देखने को मिली है।  

बीजामृत, जीवामृत, आच्छादन, वापसा और सह फसल प्राकृतिक खेती के मुख्य स्तम्भ हैं। इस खेती में प्रयोग होने वाले संसाधनों को किसान अपने घर, खेत या गांव से ही पूरा कर रहा हैं, क्योंकि इसमें मुख्यतः देसी गाय का गोबर, मूत्र और आसपास ही उपलब्ध पेड़-पौधे जैसे कि नीम, दरेक, आम, अमरुद, आक और गेंदा इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।

जिला में लगभग 525 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की जा रही है और वर्तमान में करीबन आठ हजार किसान इस पद्धति से जुड़ चुके हैं। मुख्य तौर पर वे मिश्रित खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसमें खरीफ के मौसम में मक्की के साथ मास एवं सोयाबीन या ओकरा फ्रेंचबीन इत्यादि की पैदावार ली जा रही है। रबी मौसम में गेहूं के साथ सरसों, चना, पालक के साथ धनिया, मेथी या मूली की उपज ली जा रही है। इससे किसी कारणवश एक फसल को नुकसान होने पर दूसरी से उसकी भरपायी आसानी से हो रही है।

प्राकृतिक खेती से जिला के किसान बहुत ही कम लागत में अपने परिवार की आर्थिकी बढ़ा रहे हैं। साथ ही समाज को पौष्टिक भोजन भी उपलब्ध करवा रहे हैं, जो कि हमें रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है और यह आज के समय की जरूरत भी है।

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