चीन के बहिष्कार आंदोलनों का असर भारत में चीनी निवेश पर क्या होगा?

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भारत-चीन सीमा विवाद के बीच देश में कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर चीनी सामान और सॉफ़्टवेयर के बहिष्कार की मुहिम छेड़ दी है. हालांकि अब ऐसा लगता है कि ये मुहिम परवान चढ़ने से पहले ही कमज़ोर पड़ गई.

चीन पर कोरोना वायरस फैलाने के आरोप तो पहले से लगते रहे हैं जिसका कोई सबूत अभी तक सामने नहीं आया है. लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर एशिया की इन दो बड़ी ताक़तों के बीच जैसे-जैसे तनाव बढ़ता जा रहा है, देश में चीन विरोधी भावनाएं भी मुखर हो रही हैं.

ख़ुद को राष्ट्रवादी कहने वाले लोगों की ओर से किए गए बहिष्कार के इस आह्वान से मुमकिन है कि मोदी सरकार को वक़्ती तौर पर फ़ायदा हुआ हो. पर ऐसा केवल भारत-चीन सीमा विवाद की वजह से नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद भी आत्मनिर्भरता हासिल करने का नारा बुलंद किया है. लेकिन भारत में चीन की मौजूदगी एक ऐसी बात है, जिससे बचा नहीं जा सकता है.

भारत के रसोई घर, बेडरूम में, एयर कंडीशनिंग मशीनों की शक्ल में, मोबाइल फोन और डिजिटल वैलेट के रूप में चीन कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में मौजूद है. ‘लोकल के लिए वोकल’ के मोदी के नारे के तहत भले ही फ़्लिपकार्ट और अमेज़न ने भारत में बनी चीज़ों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया हो लेकिन कारोबार जगत अभी भी पूरी तरह से इसके पक्ष में नहीं दिख रहा.

चीन ने भारत में छह अरब डॉलर से भी ज़्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है जबकि पाकिस्तान में उसका निवेश 30 अरब डॉलर से भी ज़्यादा का है. मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है.

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