शिमला शिक्षा विभाग में 260 करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले में सीबीआइ ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें दो सरकारी कर्मचारी व एक निजी शिक्षण संस्थान का उपाध्यक्ष है। जांच एजेंसी ने शुक्रवार को बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले में हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग के तत्कालीन अधीक्षक ग्रेड टू अरविंद राजटा, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के हेड कैशियर एसपी सिंह और ऊना के केसी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के उपाध्यक्ष हितेश गांधी गिरफ्तार किया है। अरविंद राजटा अभी उच्चतर शिक्षा विभाग में मशोबरा के बल्देयां स्कूल में अधीक्षक के पद पर कार्यरत हैं।
कुछ माह पहले जांच एजेंसी ने शिमला में अरविंद राजटा तीन ठिकानों ढली और कोटखाई में घरों में रेड करने के साथ ही उसके भाई के भट्टाकुफर स्थित घर पर भी दबिश दी थी। इस दौरान सीबीआइ कई बैक खातों के रिकॉर्ड, कंप्यूटर हार्ड डिस्क, पेन ड्राइव सहित अन्य अहम दस्तावेज साथ ले गई थी। तब राजटा आरोपित नहीं थे। उन्हें आरोपित बनाने के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी।
सूत्रों के अनुसार सीबीआइ ने तीनों आरोपितों की अलग-अलग जगह से गिरफ्तार किया। अब शनिवार को आरोपितों को शिमला की कोर्ट में पेश किया जाएगा। इनके जरिये छात्रवृत्तियां डकारने वाले बेनकाब होंगे। राजटा अगर 48 घंटे तक पुलिस कस्टडी में रहा तो उसे डीम्ड सस्पेंड माना जाएगा। उसकी गिरफ्तारी शिमला से हुई है।
जांच एजेंसी के प्रवक्ता आरके गौड़ ने तीनों की गिरफ्तारी की पुष्टि की है। उनके अनुसार घोटाले के संबंध में 21 जगहों पर निजी शिक्षण संस्थानों पर छापे डाले थे। इनमें कुछ व्यक्तियों की घोटाले में भूमिका पाई गई। आरोप है कि छात्रों के आय, जाति प्रमाणपत्र भी जाली बनाए गए। सीबीआइ ने राज्य सरकार के आग्रह पर पिछले साल सात मई को शिमला ब्रांच में केस दर्ज किया था।
यह था मामला
2013-14 से 2016-17 तक 924 निजी संस्थानों के विद्यार्थियों को 210.05 करोड़ रुपये और 18682 सरकारी संस्थानों के विद्यार्थियों को 56.35 करोड़ रुपये छात्रवृत्ति के दिए गए। आरोप है कि कई संस्थानों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर छात्रवृत्ति की मोटी रकम हड़प ली। जनजातीय क्षेत्रों के विद्यार्थियों को कई साल तक छात्रवृत्ति ही नहीं मिल पाई। एक छात्र की शिकायत पर फर्जीवाड़े से पर्दा उठा। शिक्षा विभाग की जांच रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013-14 से वर्ष 2016-17 तक प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति के तौर पर विद्यार्थियों को 266.32 करोड़ रुपये दिए गए। इनमें गड़बड़ी पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति में हुई है। इसमें 260 करोड़ 31 लाख 31,715 रुपये दिए गए हैं। छात्रवृत्ति की जो राशि प्रदेश के विद्यार्थियों को मिलनी थी, उसे देशभर के अलग-अलग क्षेत्रों में गलत तरीके से बांटे जाने का आरोप है।