5 सितंबर को भारत में लोग अपने शिक्षकों को और अपने जीवन में उनके योगदान को याद करते हैं.

जहां शिक्षकों के सम्मान में विश्व शिक्षक दिवस पांच अक्तूबर को मनाया जाता है, वहीं भारत में ये एक महीने पहले पांच सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति और शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर मनाया जाता है. डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था.

कौन थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन?

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म मद्रास (मौजूदा चेन्नई) से चालीस किलोमीटर दूर तमिलनाडु में आंध्रप्रदेश से सटी सीमा के नज़दीक तिरुतन्नी में हुआ था.

एक मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे राधाकृष्णन के पिता श्री वीर सामैय्या उस दौरान तहसीलदार थे.

1950-2003 में जनक राज जय लिखते हैं कि हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने वाला ये परिवार मूल रूप से सर्वपल्ली नाम के गांव से था. राधाकृष्णन के दादाजी ने गांव छोड़ कर तिरुतन्नी में बसने का फ़ैसला किया था.

आठ साल की उम्र तक राधाकृष्णन तिरुतन्नी में ही रहे जिसके बाद उनके पिता ने उनका दाख़िला क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल में करा दिया.

इसके बाद तिरुपति के लूथेरियन मिशनरी हाई स्कूल, फिर वूर्चस कॉलेज वेल्लूर और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी की.

सोलह साल की उम्र में अपनी दूर की एक रिश्तेदार के साथ उनकी शादी हो गई. बीस साल की उम्र में उन्होंने ‘एथिक्स ऑफ़ वेदान्त पर अपनी थीसिस लिखी जो साल 1908 में प्रकाशित हुई थी.

बेहद कम उम्र में राधाकृष्णन ने पढ़ाना शुरू कर दिया था. इक्कीस साल की उम्र में वो मद्रास प्रेसिडेन्सी कॉलेज में फ़िलॉसफ़ी विभाग में जूनियर लेक्चरर बन गए थे.

वो आंध्र प्रदेश यूनिवर्सिटी और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे और दस साल तक दिल्ली यूनिवर्सिचटी के चांसलर रहे. वो ब्रिटिश एकेडमी में चुने जाने वाले पहले भारतीय फ़ेलो बने और 1948 में यूनेस्को के चेयरमैन भी बनाए गए थे.

भारत में साल 1962 से शिक्षक दिवस मनाया जाता है. इसी साल मई में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने देश के दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर पदभार संभाला था. इससे पहले 1952 से 1962 तक वो देश के पहले उप-राष्ट्रपति रहे थे.

एक बार डॉक्टर राधाकृष्णन के मित्रों ने उनसे गुज़ारिश की कि वो उन्हें उनका जन्मदिवस मनाने की इजाज़त दें. डॉक्टर राधाकृष्णन का मानना था कि देश का भविष्य बच्चों के हाथों में है और उन्हें बेहतर इंसान बनाने में शिक्षकों का बड़ा योगदान है.

उन्होंने अपने मित्रों से कहा कि उन्हें प्रसन्नता होगी अगर उनके जन्मदिन को शिक्षकों को याद करते हुए मनाया जाए. इसके बाद 1962 से हर साल पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है.

जानेमाने कवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी किताब स्मरणांजलि में लिखा है, “जब राधाकृष्णन मॉस्को में भारत के राजदूत थे, बहुत दिनों तक स्टालिन उनसे मुलाक़ात के लिए राज़ी नहीं हुए. अंत में जब दोनों की मुलाक़ात हुई तो डॉक्टर राधाकृष्णन ने स्टालिन से कहा, “हमारे देश में एक राजा था जो बड़ा अत्याचारी और क्रूर था. उसने रक्त भरी राह से प्रगति की थी किन्तु एक युद्ध में उसके भीतर ज्ञान जाग गया और तभी से उसने धर्म, शांति और अहिंसा की राह पकड़ ली. आप भी अब उसी रास्ते पर क्यों नहीं आ जाते?”

“डॉक्टर राधाकृष्णन की इस बात का स्टालिन क्या जवाब देते. उनके जाने के बाद स्टालिन ने अपने दुभाषिए से कहा, “ये आदमी राजनीति नहीं जानता, वह केवल मानवता का भक्त है.”

उप-राष्ट्रपति के तौर पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन चीन गए थे तो माओ ने अपने निवास चुंग नान हाई के आंगन के बीचोबीच आकर उनकी अगवानी की. जैसे ही दोनों ने हाथ मिलाया राधाकृष्णन ने माओ के गाल थपथपा दिए.

इससे पहले कि वह अपने ग़ुस्से या आश्चर्य का इज़हार कर पाते, भारत के उप-राष्ट्रपति ने ज़बरदस्त पंच लाइन कही, “अध्यक्ष महोदय, परेशान मत होइए. मैंने यही स्टालिन और पोप के साथ भी किया है.”

भारत के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह उस समय चीन में भारतीय दूतावास में अफ़सर थे. उन्होंने बीबीसी संवाददाता रेहान फ़ज़ल को बताया था कि इस मुलाक़ात के समय वह वहाँ मौजूद थे.

भोज के दौरान माओ ने खाते-खाते बहुत मासूमियत से चॉपस्टिक से अपनी प्लेट से खाने का एक कौर उठा कर राधाकृष्णन की प्लेट में रख दिया. माओ को इसका अंदाज़ा ही नहीं था कि राधाकृष्णन पक्के शाकाहारी हैं. राधाकृष्णन ने भी माओ को यह आभास नहीं होने दिया कि उन्होंने कोई नागवार चीज की है.

उस समय राधाकृष्णन की उंगली में चोट लगी हुई थी. चीन की यात्रा से पहले कंबोडिया के दौरे के दौरान उनके एडीसी की ग़लती की वजह से उनका हाथ कार के दरवाज़े के बीच आ गया था और उनकी उंगली की हड्डी टूट गई थी. माओ ने इसे देखते ही तुरंत अपना डॉक्टर बुलवाया और उसने नए सिरे से उनकी मरहम पट्टी करवाई.

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