भाषा एवं संस्कृति विभाग शिमला द्वारा जिला स्तरीय लेखक गोष्ठी एवं पहाड़ी कवि सम्मेलन.

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District District Level Writers Seminar and Pahari Kavi Sammelan by Language and Culture Department Shimla and Pahari Kavi Sammelan by Language and Culture Department Shimla

जिला भाषा एवं संस्कृति विभाग शिमला द्वारा गेयटी थियेटर काॅन्फ्रेंस हाॅल में पहाड़ी दिवस 2021 के आयोजन के अंतर्गत जिला स्तरीय लेखक गोष्ठी एवं पहाड़ी कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सुदर्शन वशिष्ट ने कहा कि प्रदेश की लोक भाषाएं, लोक गीत व अन्य विविध लोक शैलियां संस्कृति का संरक्षण कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि पहाड़ी भाषा को संविधान की 8वीं सूची में शामिल करने के लिए साहित्यिक, भाषाई तालमेल के साथ-साथ राजनीतिक इच्छा शक्ति का होना भी अत्यंत आवश्यक है। मुख्यातिथि के रूप में सम्मिलित हुए जिला लोक सम्पर्क अधिकारी संजय सूद ने कहा कि पहाड़ी बोली को संविधान की 8वीं सूची में शामिल करने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।

उन्होंने कहा कि इस दिशा में अनेक कार्य करने की आवश्यकता है, जिसके लिए एक मत बनाना आवश्यक है। गोष्ठी में उमा ठाकुर ने शोध पत्र वाचन किया, जिसमें हिमाचली बोली में महासु बोली का संदर्भ एवं नई शिक्षा नीति में सार्थकता शामिल था।

उन्होंने पहाड़ी बोली को लिपिबद्ध करने पर बल दिया। डाॅ. कुमार सिंह सिसोधिया ने भाषा और बोली के अंतर को समझाते हुए विभिन्न भाषाओं का बोलियों के रूप में विस्तार के लिए अलग-अलग लोगों और समुदाय की सहभागिता की आवश्यकता पर जोर दिया। भूप रंजन ने अपने विचारों में नए परिवेश में पहाड़ी भाषा के स्वरूप को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्धता के साथ इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता के प्रति विचार व्यक्त किए। आकाशवाणी के वरिष्ठ उद्घोषक डाॅ. हुकुम शर्मा ने पहाड़ी भाषा के संवर्धन और संरक्षण में मां की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया।

उन्होंने कहा कि लोक नाट्य विधाएं व लोकानुरंजन भी पहाड़ी भाषा के संरक्षण को प्रभावी बना सकते हैं। उन्होंने बोलियों के आॅडियो, वीडियो के रूप में भी संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। भाषा संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष कर्ण सिंह ने नकारात्मक सोच को छोड़ सकारात्मक रूप से पहाड़ी भाषा के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने कहा कि पहाड़ी के संरक्षण के लिए हमें चार दीवारी की गोष्ठियों से बाहर आकर स्कूलों, विद्यालयों, विश्वविद्यालयों एवं अन्य संगठनों एवं संस्थाओं में कार्य करना होगा तभी यह प्रयास सार्थक होंगे।पदम श्री डाॅ. उमेश भारती ने कहा कि पहाड़ी भाषा या स्थानीय भाषा का संरक्षण न केवल संस्कृति को संरक्षित करता है बल्कि प्रकृति और प्रकृति संगत चिकित्सा एवं औषधियों एवं जड़ी बूटी के सरंक्षण में भी सहायक है।  जगदीश कश्यप ने अपनी पहाड़ी बाली के संवर्धन व संरक्षण के शुरूआत अपने परिवार, अपने घर व बच्चों के करने की आवश्यकता पर बल दिया। 

 इस अवसर पर दिनेश गजटा, वंदना राणा, नरेश बेयोग, सुनिता ठाकुर, नरेश कुमार नौरिया, वेद प्रकाश शर्मा, कल्पना कांगटा, रोशल लाल पराशर, डाॅ. सरोज भारद्वाज, पोरस ठाकुर, ओम प्रकाश शर्मा, राजेन्द्र चैहान ने भी पहाड़ी बोली में कविता पाठ किया।  मांदरू गिज्टा व लायक राम खशाण ने हिमाचली बोली पर पारम्परिक लोक गीत की प्रस्तुति दी। जिला भाषा अधिकारी अनिल हारटा ने दो दिवसीय इस कार्यक्रम की परिकल्पना की तथा सफल रूप से आयोजन किया गया। गोष्ठी व कवि सम्मेलन का संचालन नरेन्द्र द्वारा किया गया। 

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