ऊना (27 फरवरी) – ऊंची पर्वत श्रंखलाओं के बीच छोटी-छोटी उपजाऊ जमीन के काशतकार किसानों के लिए पहाड़ी लहसुन खुशहाली और आशा की एक नई किरण लेकर आया है और हिमाचल प्रदेश में धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर के सरताज माने जाने वाले सिरमौर जिला लहसुन उत्पादन में उत्तर भारत में प्रमुख केंद्र के रूप में तेजी से उभर रहा है। इस बारे जानकारी देते हुए कृषि मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने बताया कि पहाड़ी लहसुन की विशिष्ट सुगंध, स्वाद तथा तैलीय पुत्थी की वजह से यह महानगरों के उपभोक्ताओं की पहली पसंद बनकर उभर रहा है।उन्होंने बताया कि सिरमौर जिला में उपयुक्त वातावरण, तापमान तथा अनुकूल भौतिक परिस्थितियों के होने से ज्यादा से ज्यादा किसान लहसुन की खेती के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि सरकार सिरमौर जिला में लहसुन की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए संस्थागत प्रोत्साहन प्रदान कर रही है ताकि सिरमौर को मसालों के उत्पादन में देश के मानचित्र पर उभारा जा सके। सिरमौर जिला में लहसुन अकेली फसल के तौर पर उगाई जाती है तथा इस समय फसल से जिला में 5360 छोटे तथा मंझोले किसानों की आय के वैकल्पिक साधन उपलब्ध होते है। लहसुन अब क्षेत्र में परम्परागत नकदी फसल के तौर पर उगाई जा रही है ताकि देश में उम्दा लहसुन की मांग को पूरा किया जा सके।वीरेन्द्र कंवर ने बताया कि इस समय सिरमौर जिला के राजगढ़, पच्छाद तथा संगड़ाह में यह फसल बडे़ पैमाने पर उगाई जा रही है जबकि जिला के तीन अन्य विकास खंडों में किसान इसे वैकल्पिक फसल के तौर पर उगा रहे हैं। इस समय सिरमौर जिला के 3734 हैक्टेयर क्षेत्र में 57205 मीट्रिक टन उत्पादन किया जाता है तथा स्थानीय लोगों ने अपने घरेलू उपयोग के लिए अपने कीचन, गार्डन व बरामदों में भी लहसुन उगाना शुरू किया है। उन्होंने बताया कि लहसुन की फसल समुद्रतल से 1200 मीटर ऊंचाई पर शुष्क मिट्टी, चिकनी बालू मिट्टी, गाद भरी मिट्टी में उगाई जाती है। लहसुन की गांठ का विकास ठण्डे तथा आर्द्रता भरे वातावरण में होता है जबकि गांठ को विकसित करने के लिए ठण्डे तथा शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। बड़े आकार के लहसुन की पुत्थी के लिए जानी जाने वाली लहसुन की दो स्थानीय प्रजातियों जीएचसी-प तथा एग्रीफाऊंड पार्वती प्रजाति जिला के 3734 हैक्टेयर क्षेत्र में वाणिज्यिक आधार पर उगाई जा रही है ताकि शुद्ध देसी लहसुन की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके।कृषि मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने बताया कि लहसुन की खेती किसानों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो रही है। लहसुन की खेती की लागत प्रति हैक्टेयर 235057 रूपये आती है जबकि किसानों को प्रति हैक्टेयर 988943 रूपये की आमदनी होती है। जिला में लहसुन की बीजाई अक्तूबर-नवम्बर माह में की जाती है जबकि लहसुन फसल की कटाई अप्रैल माह में शुरू हो जाती है। किसान खाद्यान्न के उद्देश्य से सोलन, नाहन तथा ददाहू की मंण्डी में लहसुन की फसल बेचते है जबकि पहाड़ी लहसुन की गुणवता व औषधीय गुणों की वजह से पिछले कुछ सालों से तमिलनाडू, कर्नाटक व केरल सहित अन्य दक्षिण राज्यों के कृषि व्यापारी स्थानीय किसानों से लहसुन की फसल सीधे तौर पर खरीद रहे हैं। वीरेंद्र कंवर ने बताया कि जिला में लहसुन की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि विभाग लहसुन के बीज पर पचास प्रतिशत अनुदान, किसान जागरूकता शिविर, नवीनतम तकनीक आदि विधियां अपना रहा है ताकि छोटे किसानों को खेती की ओर आकर्षित किया जा सके। फसल में ”येलो रस्ट“ का रोग, तकनीकी जानकारी व प्रोसैसिंग सुविधाओं का अभाव मुख्य रूप में झेलना पड़ रह है जिसके समाधान के लिए कृषि विभाग ने खंड स्तर पर प्रोसैसिंग सुविधाएं विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है ताकि सिरमौर को लहसुन उत्पादन के मुख्य केंद्र के रूप में विकसित किया जाए..
_