सुभाष पालेकर के यू ट्यूब चैनल के माध्यम से उनके विचारों को जानने का मुझे अवसर मिला और कृषि संबंधी उनके ज्ञान से प्रभावित भी रहा हूं। जिस कारण प्राकृतिक खेती की ओर रूझान बढ़ा। प्रदेश सरकार ने इसे एक योजना का स्वरूप प्रदान किया तो सरकार के इन प्रयासों से इस दिशा में कुछ बेहतर करने का हौसला बढ़ा और ऊर्जा भी प्राप्त हुई।” यह कहना है प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना से जुड़े 39 वर्षीय अमिश कुमार का।
अमिश कुमार पुत्र सतीश चंदर गाँव घुमार्विन, डाकघर लगमन्वीं के स्थायी निवासी हैं। यह गाँव विकास खंड भोरंज से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इन्होंने स्नात्कोतर तक की शिक्षा ग्रहण की है और पत्नी गृहिणी हैं। इनका एक बेटा और बेटी हैं। परिवार में कुल 6 सदस्य हैं। ये एक निजी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। काफी समय तक गुर्दे की बीमारी से पीड़ित रहे और कुछ साल पहले उनके पिता ने अपना एक गुर्दा देकर अमिश को नया जीवन दिया।
वर्ष 2019 में अमिश ने एक विज्ञापन में सुभाष पालेकर खेती के बारे में पढ़ा। फिर इन्होंने कृषि विभाग (आत्मा) भोरंज के बी0टी0एम0 और ए0टी0एम0 से इस खेती के बारे में जानकारी ली। तत्पश्चात एक देसी गाय खरीदी और सुभाष पालेकर प्राकृतिक विधि से कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। इस विधि से अच्छे परिणाम मिले और उनकी सेहत में भी सुधार होने लगा। इससे उत्साहित इनका पूरा परिवार इस खेती में रुचि लेने लगा। इनके पास 50 कनाल कृषि योग्य भूमि है और लगभग 10 कनाल भूमि में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। इस खेती से इनके परिवार की आय में भी वृद्धि हुई है।
इन्होंने खरीफ में अदरक, करेला, लौकी, बैंगन, भिंडी, मक्की, उड़द, सोयाबीन आदि फसलें उगाई थी। बागवानी में इनके पास नींबू, अनार, आम, अमरुद, लिची आदि के फलदार पौधे हैं। इसमें भी इन्होंने सुभाष पालेकर प्राकृतिक विधि से काम करना शुरु कर दिया है। ये अपने फल-सब्जियों को गांव में ही बेच देते हैं। विभिन्न प्रकार की फसलें तैयार करके मंडी में उचित मूल्य प्राप्त करते हैं और साल में लगभग 50 हजार रुपए कमा लेते हैं। इनसे प्रेरित होकर गांव के अन्य लोग भी इस विधि से खेती करने के इच्छुक हैं। इन्होंने अपने गाँव के बहुत किसानों को इस परियोजना से जोड़ दिया है।
संगीत विधा में पारंगत अमिश कुमार खेत-खलिहान से जुड़कर खुश हैं। विशेष तौर पर प्राकृतिक खेती करने से उन्हें अलग सा सुकून मिलता है। वे कहते हैं कि सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक समय की जरूरत है। रसायन युक्त उत्पाद, खादों पर अनावश्यक व्यय, स्वास्थ्य को खराब करने वाली चीजें अगर हमें छोड़नी हैं और प्राकृतिक रूप में कृषि की उत्पादकता को बढ़ाना है तो यह तकनीक अपनानी ही होगी। प्रदेश सरकार द्वारा इसके अंतर्गत प्रशिक्षण शिविर, प्रदर्शन प्लॉट, फार्म स्कूल, कृषक समूह, किसान मेला, किसान गोष्ठी, भ्रमण आदि का आयोजन करवाया जाता है। इस तकनीक को बढ़ावा देने में सरकार के सराहनीय प्रयासों से उनकी राह और भी आसान हो गई है।
परियोजना निदेशक (आत्मा ) डॉ. नीति सोनी का कहना है कि कृषि विभाग (आत्मा) भोरंज द्वारा उन्हें मक्की, सोयाबीन, तिल का प्रदर्शनी प्लांट भी दिया गया था। विभाग की ओर से इनको गाय, फर्श पक्का करने, संसाधन भंडार के लिये अनुदान दिया गया है। ए0टी0एम0, बी0टी0एम0 ने भी समय-समय पर जाकर इनका मार्गदर्शन किया। उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती से युवाओं का जुड़ाव सकारात्मक संदेश देता है।