भारत के दिल्ली-एनसीआर इलाक़े में इस साल की 12 अप्रैल और तीन मई के बीच में नेशनल सेंटर ऑफ़ सीसमोलोजी ने भूकंप के 7 झटके रिकार्ड किए. इनमें से किसी भी झटके की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 4 से ज़्यादा की नहीं थी और जानकरों को लगता है कि 5 से कम तीव्रता वाले भूकंप के झटकों से बड़ा नुक़सान नहीं होने की सम्भावना प्रबल रहती है.

इस बीच दो सवाल ज़रूर उठ रहे हैं. पहला ये कि आख़िर दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के झटकों के वाक़ये बढ़ क्यों रहे हैं और क्या भविष्य के लिए ये बड़ी चिंता का विषय बन सकता है? लेकिन सबसे पहले इस बात को समझने की ज़रूरत है कि भारत में भूकंप की क्या आशंकाएं हैं. भूगर्भ विशेषज्ञों ने भारत के क़रीब 59% भू-भाग को भूकंप सम्भावित क्षेत्र के रूप में वर्गित किया है.

दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत में ऐसे ज़ोन रेखांकित किए गए हैं जिनसे पता चलता है कि किस हिस्से में सीस्मिक गतिविधि (पृथ्वी के भीतर की परतों में होने वाली भोगौलिक हलचल) ज़्यादा रहती हैं और किन हिस्सों में कम. दिल्ली-एनसीआर का इलाक़ा सीस्मिक ज़ोन-4 में आता है और यही वजह है कि उत्तर-भारत के इस क्षेत्र में सीस्मिक गतिविधियाँ तेज़ रहती हैं.

जानकार सीस्मिक ज़ोन-4 में आने वाले भारत के सभी बड़े शहरों की तुलना में दिल्ली में भूकंप की आशंका ज़्यादा बताते हैं. ग़ौरतलब है कि मुबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहर सिस्मिक ज़ोन-3 की श्रेणी में आते हैं. जबकि भूगर्भशास्त्री कहते हैं कि दिल्ली की दुविधा यह भी है कि वह हिमालय के निकट है जो भारत और यूरेशिया जैसी टेक्टॉनिक प्लेटों के मिलने से बना था और इसे धरती के भीतर की प्लेटों में होने वाली हलचल का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ सकता है.

‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स’ के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर महेश टंडन को लगता है कि दिल्ली में भूकंप के साथ-साथ कमज़ोर इमारतों से भी ख़तरा है.

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