“आमिर रोज़ की तरह सुबह घर से तैयार होकर काम करने के लिए फ़ैक्ट्री गया था लेकिन उस दिन बिहार बंद की घोषणा थी और हर तरफ़ जुलूस निकाले जा रहे थे. फ़ैक्ट्री बंद थी. वह वापस लौट आया और उसी जुलूस में शामिल हो गया जिसमें मोहल्ले के लोग शामिल थे.”
“जुलूस के दौरान कि जो कुछ तस्वीरें और वीडियो मिलें हैं उसमें वह हाथ में तिरंगा थामे दिखता है. वो ही उसकी आख़िरी तस्वीर थी. उसके बाद मिली तो उसकी सड़ी हुई लाश, वो भी 11 दिनों के बाद.”
ये शब्द 18 साल के एक युवक आमिर हंज़ला के बड़े भाई साहिल के हैं जो फुलवारीशरीफ़ के हारुन नगर सेक्टर 3 में रहते हैं.
साहिल के घर में मातम पसरा है. उनका कमाने वाला भाई हिंसा की भेंट चढ़ गया. उस हिंसा की जिससे उसका दूर-दूर तक का वास्ता नहीं था.
साहिल आगे कहते हैं, “उसे क्या पता था कि CAA और NRC क्या होता है. बहुत संकोची और शर्मिले स्वभाव वाला लड़का था. आप उस तस्वीर में देखिए जिसमें उसने हाथों में तिरंगा लिया है. कितना मासूम दिख रहा है उसमें वो! उसे तो बस केवल जुलूस दिखा होगा, उसमें अपने लोग दिखे होंगे, उसने देखा होगा कि देश का झंडा लहराया जा रहा है, सोचा होगा कि घर जाकर क्या करूंगा, जुलूस में टाइमपास कर लेता हूं.”
बिहार बंद के दौरान जुलूस
नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के विरोध में 21 दिसंबर को जिस दिन राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार बंद बुलाया था, उस दिन पटना के फुलवारीशरीफ़ में हिंसा हुई थी. दो गुटों के बीच जमकर पत्थरबाज़ी हुई. फ़ायरिंग की रिपोर्टें भी आयीं. क़रीब एक दर्जन लोग घायल हुए जिन्हें इलाज के लिए एम्स और पीएमसीएच में ले जाया गया था.
आमिर हंज़ला उसी हिंसा के बाद से लापता थे. परिजनों ने 22 दिसंबर को फुलवारीशरीफ़ थाने में आमिर की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी थी. घटना के 11 दिनों बाद 31 दिसंबर को पुलिस ने हिंसा वाली जगह के पास से ही एक गड्ढे से आमिर का शव बरामद किया.
शव के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट कहती है कि आमिर के शरीर पर चोट के गहरे निशान थे. शरीर के हिस्सों पर चाक़ू से भी वार किया गया था. आमिर की हत्या कर दी गई थी.
पुलिस ने हिंसा में शामिल अभियुक्त उपद्रवियों में से एक दीपक कुमार नोनिया नाम के युवक को गिरफ़्तार कर उसी की निशानदेही पर आमिर के शव को फुलवारीशरीफ़ डीएसपी कार्यालय से महज़ 100 मीटर की दूरी पर एक गड्ढे से बरामद किया.
क्या कहती है पुलिस
फुलवारीशरीफ़ थाना के प्रभारी रफ़ीक़ुर रहमान के अनुसार, “विनोद कुमार नाम का शख्स आमिर की हत्या का मुख्य अभियुक्त है. जो अभी तक फ़रार है. बाक़ी के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. एक अन्य आरोपी चैतू नाम के युवक के घर से आमिर का मोबाइल बरामद किया गया है. उससे पूछताछ में हत्या के बाद जिस ठेले से लादकर आमिर का शव गड्ढे तक ले जाया गया था उसे भी मुख्य आरोपी विनोद कुमार के घर के सामने से बरामद किया गया है.”
पुलिस ने फुलवारीशरीफ़ की हिंसा में शामिल कुल 60 उपद्रवियों को अभी तक गिरफ़्तार किया है. कई लोगों के घरों से हथियार और कारतूस भी बरामद किए गए हैं जो उस दिन की हिंसा में इस्तेमाल किए थे. लेकिन, पुलिस आमिर हंज़ला के मामले पर ज़्यादा कुछ बोलने से बचती दिख रही है. क्योंकि अब यह मामला बड़ा बनता जा रहा है. पुलिस ने तो शुरू में हिंसा, मर्डर और फ़ायरिंग की बात से भी इनकार कर दिया था.
भाई ने बताई कहानी
गुरुवार को जब हम आमिर के परिजनों से बात करने उनके घर पहुंचे तब पहले से मीडियाकर्मी वहां मौजूद थे. माहौल ग़मगीन था. आमिर का परिवार किराए के मकान में रहता है. जो लोग मिलने के लिए आ रहे थे उनके लिए बाहर कुछ कुर्सियां लगा दी गई थीं. आमिर के भाई साहिल, अली, आमिर हमज़ा सभी नीचे ही थे.
फुलवारीशरीफ़ में उस दिन क्या हुआ था? हिंसा क्यों हुई? ये अब तक मीडिया रिपोर्ट्स में नहीं आ सका है.
आमिर के फुफुरे भाई अब्दुल कहते हैं, “संगत पर जहां आमिर की बॉडी मिली है वहां जाइएगा तो पता चल जाएगा कि हिंसा क्यों हुई थी और करने वाले लोग कौन थे. लेकिन मैं आपसे कहूंगा कि अभी मत जाइए उधर. बहुत तनाव है. जो लोग आरोपी हैं वो अपना घर-बार छोड़कर भाग गए हैं. कोई होगा भी तो बात नहीं करेगा. वो लोग कुछ भी कर सकते हैं.”
अब्दुल आगे बताते हैं, “जुलूस जब टमटम पड़ाव से निकला था तब सबकुछ ठीक था. आगे एक स्कूल है सरस्वती विद्या मंदिर के नाम से. वहां पर आरएसएस और बजरंग दल वालों का ऑफ़िस भी है. हम लोगों ने जब पता किया तो मालूम चला कि स्कूल की छत की तरफ़ से पत्थरबाज़ी शुरु की गई थी. फिर दोनों तरफ़ से होने लगी. थोड़ी देर में फ़ायरिंग होने लगी. मामला आउट ऑफ़ कंट्रोल हो गया.”
आमिर के पिता सोहैल अहमद से भी हमारी मुलाक़ात हुई. उन्हें उम्मीद है कि आमिर के हत्यारों को ज़रूर सज़ा मिलेगी. लेकिन प्रशासन, पुलिस और सरकार की भूमिका पर वे सवाल उठाते हैं.
वो कहते हैं, “शुरु में पुलिस और प्रशासन ने इसे हल्के में ले लिया. हमें तो उसी दिन शक हो गया था जिस दिन मेरा बच्चा वापस लौटकर घर नहीं आया. हम लोग थाने में गए भी. लेकिन शुरु में जांच में तेज़ी नहीं दिखायी गई. डीएसपी ने मीडिया में मेरे बेटे को मानसिक रूप से परेशान बता दिया. मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिशें हुईं. मगर मुझे ऊपर वाले पर यक़ीन था. हम लोग हार नहीं माने. पुलिस को हरसंभव मदद किए जांच में. उनके सामने रोए, गिड़गिड़ाए, बिलखे. अगर शुरू में ही मामले को गंभीरता से लिया गया होता तो हो सकता है कि मेरे बेटे को बचा भी लिया जा सकता था. या उसकी लाश सड़ती नहीं.”
फुलवारीशरीफ़ के डीएसपी से आमिर के पिता के आरोपों पर जवाब लेने के लिए हमने सम्पर्क किया लेकिन उनकी तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिला. हमने मैसेज के ज़रिए भी उनसे उनका पक्ष जानने की कोशिश की. मगर बावजूद इसके जवाब नहीं मिला.
‘एक कमाने वाला था, वो भी गया’
आमिर छह भाई बहन हैं. पिता बेरोज़गार हैं. पैसों की कमी के कारण ही महज़ 18 साल की उम्र में आमिर ने पढ़ाई छोड़ दी थी और बैग बनाने वाली एक कंपनी में काम करने लगे थे. उनसे छोटे तीन भाई हैं. तीनों अभी पढ़ाई कर रहे हैं.
पिता सोहैल अहमद कहते हैं, “एक कमाने वाला था. वो भी गया. अब फिर से किसी की पढ़ाई छुड़ानी पड़ेगी. मेरे बेटे की भरपायी तो नहीं हो सकती. मगर मैं बिहार सरकार से इतनी ही गुज़ारिश करूंगा कि हम मज़लूमों पर रहम करे. कम से कम हमें उचित मुआवज़ा दे दे. मेरे एक बेटे को नौकरी दे दे. जिससे हमारा परिवार चल सके.”
आमिर के घरवालों को दुख इस बात का है कि उनके यहां ऐसा हादसा हो गया मगर ख़ैर लेने कोई नहीं आया. पिता कहते हैं, “ना तो सरकार का कोई नुमाइंदा पूछने के लिए आया ना ही कोई नेता. आप सोचिए कि कितने असंवेदनशील हो गए हैं नेता! राजद के लोग जिन्होंने बंद बुलाया था, उनके यहां से भी कोई हमारी ख़बर लेने नहीं पहुंचा.”
वैसे तो आमिर के घरवालों ने हमें उस जगह पर जाने से मना किया जिस जगह पर हिंसा हुई थी. मगर अपनी पहचान छुपाते हुए फिर हम वहां गए.
जिस जगह पर उस दिन हिंसा हुई थी उसे “संगत” कहा जाता है. एक छोटा सा मंदिर जो उस दिन की हिंसा में क्षतिग्रस्त हुआ था, वो अभी तक उस दिन की कहानी बता रहा था. दीवारों पर पत्थरों के निशान थे. घंटे से लेकर मूर्ति तक सबकुछ कहीं ना कहीं से टूटा था. मंदिर के पास ही वो स्कूल भी था जिसकी चर्चा आमिर के घरवालों ने की थी. मगर स्कूल बंद था. हम अंदर नहीं जा सके.
संगत की गली में कुछ लोगों से हमने अपरिचित बनकर उस दिन की घटना के बारे में बात करने की कोशिश की. लेकिन सबका एक ही जवाब मिलता “हमको कुछ नहीं पता है.”
ठीक संगत पर ही लकड़ी चीरने वाली मशीन और दुकान के मालिक अनिल शर्मा बहुत पूछने के बाद केवल इतना कहते हैं, “वो तो समझ लीजिए कि किसी तरह शांत हो गया. पुलिस और प्रशासन ने जितना हो सके मामले को दबाकर रखा. वरना हालात ऐसे हो जाते कि संभले नहीं संभलता.”