नई दिल्ली: Coronavirus Outbreak: भारत में बचपन में दी जाने वाली ट्यूबरकुलोसिस (टीबी या तपेदिक) से बचाव की वैक्सीन BCG, कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आई है. कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण दुनियाभर में अब तक 80 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. एक नई रिपोर्ट में पता चला है कि जिन लोगों को BCG वैक्सीन दी गई है, उनमें मृत्य दर.यह वैैक्सीन न लेने वाले लोगों की तुलना में काफी कम है. वैज्ञानिक अब बीसीजी यानी Bacille Calmette-Guerin का टेस्ट यह देखने के लिए कर रहे हैं कि कोरोना सहित अन्य वायरस संक्रमण के असर को कम करने के लिए इम्यून सिस्टम को बढ़ाने का काम करता है
बीसीजी यानी Bacille Calmette- Guerin का टीका जन्म के तुरंत बाद लगता है. यह ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी से बचाव के लिए होता है. टीबी यानी तपेदिक से बचाव के लिए यह वैक्सीन सबसे पहले वर्ष 1920 के आसपास दुनिया में आया था. चूंकि भारत मे टीबी के केसों की संख्या काफी होती है, ऐसे में देश में 1948 में पहली बार बीसीजी टीके का इस्तेमाल हुआ, 1962 में इसे टीबी प्रोग्राम में शामिल किया गया था. ह्यूस्टन में एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर में प्रोफेसर ऑफ यूरोलॉजिक आंकोलाजी आशीष कामत ने कहा, ‘इस बात के कई प्रमाण मिले हैं कि टीबी के खिलाफ यूज की जाने वाली BCG वैक्सीन नवजात शिशुओं ही नहीं बल्कि वैक्सीनेटेड किए गए दूसरे लोगों में भी मृत्यु दर में कमी करता है.’
गौरतलब है कि कोराना वायरस की चुनौती का सामना करने के लिए देश सहित पूरी दुनिया में युद्ध स्तर पर कोशिशें जारी है. भारत में HLL लाइफकेयर लिमिटेड ने कोरोनावायरस की एंटीबॉडी किट बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है. समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से यह जानकारी सामने आई है. बता दें कि कोरोनावायरस के खिलाफ जंग में यह कामयाबी खासी महत्वपूर्ण है, इस किट को NIV पुणे द्वारा मान्य और अनुमोदित किया जा चुका है साथ ही IMR ने इसके इस्तेमाल की अनुमति भी दे दी है. एएलएल लाइकेयर, केंद्रीय स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत संचालित होती है. इस किट की मदद से मरीज के सीरम, प्लाजमा या खून लेकर एंटीबॉटी की पहचान की जा सकती है