चौहार घाटी तथा छोटाभंगाल के लोगों का अराध्य वर्षा का देवता पशाकोट देव

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    Devta-Pashakot-Dev-kullu-bhagwan-avtar
    Pashakot Dev, the god of rain, worshiped by the people of Chauhar Valley and Chhotabhangal

    चौहार घाटी तथा छोटाभंगाल घाटी में लगभग दो माह से वर्षा न होने के कारण दिन को धुप की तेज तपिश रहती है वहीँ यहां सुबह व शाम को खून जमा देने वाली प्रचंड ठण्ड का प्रकोप गत कई दिनों से ज़ारी है जिस कारण लोगों का सुबह शाम को घरों से बाहर निकलना मुशिकल हो गया है।

    वर्षा न होने से खेतों में नमी की कमी आ जाने से किसानों के द्वारा हाल ही में बीजी गई जौए सरसोंए लुहसन तथा गेंहू आदि की फसल सूखने की कगार पर आ गई है।किसान वजिन्द्र सिंहए कर्मचंदए विनोद कुमारए सुनील दत्तए मेद राम व श्याम सिंह इन सबका कहना है कि समय रहते अगर यहां पर वर्षा नहीं होगी तो किसानों द्वारा हाल ही में बीजी गई ये सभी फसलें पूरी तरह सुख जाएगी जिस कारण घाटीवासियों के समस्त किसानों की मेहनत बेकार चली जाएगी।

    वर्षा के न होने से यहां के किसान स्थानीय देवी.देवताओं के मंदिरों में जाकर वर्षा की गुहार लगा रहे हैं। दोनों घाटियों के केंद्र स्थल बरोट में अराध्य देवता पशाकोट का मंदिर स्थित है जिसे यहां के लोग वर्षा का देवता के नाम से पुजते है। जब.जब यहां वर्षा न होने का प्रकोप पड़ता है तब.तब यहां देवता पशाकोट के मदिंर शिल्हा देहरा में गांव के लोग इक्टठा हो कर देवता पशाकोट के गुर को बुलाकर मंदिर में पुजा अर्चना करते है।

    लोगों की देवता पशाकोट के उपर इतनी अटूट आस्था है कि गुर द्वारा की गई पूजा.अर्चना के बाद वर्षा अवश्य होगी ऐसा लोगों का मानना है। बरोट गांव कें कृष्ण कुमार का कहना है कि मंदिर के साथ लगते बरोट गांव में पुजारी तोलू राम तथा प्रितम राम का घर है। पुजारी का सारा परिवार जन्म से ही गूंगे है जिनमें उसके पिता तथा सभी भाई.बहन शामिल है।

    उन्हका कहना है कि इस परिवार के पीढ़ी दर पीढ़ी देवता पशाकोट के पुजारी बनते आ रहे है। दूसरा और कोई पुजारी नहीं बन सकता तथा सभी संताने जन्म गूंगें पैदा होती आई है। परिवार की बडे बेटे को ही पुजारी बनने का हक है। जनश्रुति के अनुसार जब देानों धाटियां में जब कभी वर्षा न होने का प्रकोप पड़ता है तब इस परिवार के गुर को मंदिर में बुलाया जाता।

    पुजारी धूप आदि जला कर पुजा अर्चना करने के बाद वर्षा करवाने के लिए खास पूजा का आयोजन शुरू किया जाता है जिसमें कांटेदार झाड़ियों तथा लोहे से बने पुजा के सांगल से अपने शरीर को यातना देता रहता जब तक वर्षा शुरू न हो जाए। लोगो का कहना है कि यह शिलशिला कई पीढ़ीयों से चला आ रहा है।

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