साल 2100 तक भारत होगा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश

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1950 में प्रजनन दर 5.6 थी, यानी एक महिला से औसतन 5.6 बच्चे होते थे. 2017 में ये संख्या घटकर 2.14 तक पहुंच गई. इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत में साल 2100 तक कुल प्रजनन दर घटकर 1.29 हो जाएगी.

करीब 80 साल बाद भारत की जनसंख्या घटकर 100 करोड़ तक सिमट सकती है. ऐसा प्रजनन दर (fertility rate) में गिरावट के कारण होगा. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या डिवीजन के अनुमान के मुताबिक, वैश्विक जनसंख्या में भी करीब 2 अरब की गिरावट आ सकती है. ऐसा मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में प्रकाशित वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में कहा गया है.

पिछले 70 वर्षों में भारत, कुल प्रजनन दर (total fertility rate-TFR) के मामले में पहले से ही उल्लेखनीय गिरावट का सामना कर रहा है. 1950 में प्रजनन दर 5.6 थी, यानी एक महिला से औसतन 5.6 बच्चे होते थे. 2017 में ये संख्या घटकर 2.14 तक पहुंच गई. इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत में साल 2100 तक कुल प्रजनन दर घटकर 1.29 हो जाएगी. सदी के अंत तक भारत की आबादी 300 मिलियन यानी 30 करोड़ तक कम हो जाएगी.

रिपोर्ट कहती है कि भारत की प्रजनन दर में लगातार गिरावट आती रहेगी और साल 2100 तक यह 1.29 तक पहुंच जाएगी. वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के शोधकर्ताओं ने दर्शाया है कि 2017 में वैश्विक स्तर पर भी प्रजनन दर में गिरावट आएगी. 2017 में यह 2.4 थी, 2100 तक यह 1.7 यानी लगभग आधी हो जाएगी.

मौजूदा वक्त में विश्व की जनसंख्या 7.8 अरब है. 2064 में यह संख्या 9.7 अरब तक पहुंचने का अनुमान है. इसके बाद दुनिया की जनसंख्या घटनी शुरू होगी और सदी के अंत तक 8.8 अरब रह जाएगी. पिछले साल संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया था कि दुनिया की आबादी 2100 में कम से कम 10.9 अरब तक पहुंच जाएगी.

सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश होगा भारत

हालांकि, इस अध्ययन में कहा गया है कि 2100 में भारत सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश होगा, उसके बाद नाइजीरिया होगा. भारत और नाइजीरिया, दोनों ही चीन को पीछे छोड़ देंगे. चीन की मौजूदा जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है. इस अध्ययन की भविष्यवाणी है कि चीन की आबादी चार साल में 1.4 अरब हो जाएगी. इसके बाद इसमें गिरावट आएगी और 2100 तक यह घटकर करीब 73 करोड़ रह जाएगी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समेत कई देशों में प्रजनन दर में गिरावट आई है और यह रिप्लेसमेंट लेवल से कम हो गई है. आगे चलकर आर्थिक और सामाजिक जीवन पर इसके गंभीर असर होंगे.

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